जनादेश टाइम्स- अध्यात्म टीम-
*अद्भुत*
- सगाई के दौरान लड़की- लड़का दोनों एक दूसरे की अनामिका उंगली में अंगूठी पहनाते हैं ।
- ये अंगूठी अनामिका में ही क्यूँ पहनी जाती है ?
- एक सुंदर प्रयोग बताता हूँ …..
- आप भी कर के देखें ओर समझे……
बुद्धिजीवियों और वेदों के अनुसार हमारे हाथ की दसों उंगलियां एक कुटुम्ब हैं ।
हाथ के अंगूठे हमारे माता-पिता का प्रतीक हैं।
अंगूठे के पास वाली उंगली (तर्जनी) हमारे भाई-बहन के प्रतीक।
बीच की उंगली (मध्यमा) हम खुद
चौथी अनामिका… मतलब हमारा जोड़ीदार/जीवन साथी।
और अंतिम सबसे छोटी उंगली (करंगली) हमारे बच्चे।
ये हो गया कुटुंब ।
अब देखते हैं कुटुंब के लोगों से हमारे संबंध कैसे ईश्वर ने स्थापित किये हैं।
अब फोन को एक ओर रख दोनों हाथ प्रणाम मुद्रा में जोड़ें।
बीच की दोनों उंगली (जो हम खुद हैं) को अंदर की ओर fold कर हथेली से लगा लें। अब दोनो अंगूठे एक दूसरे से दूर करे वो हो जाएंगे।
कारण माता-पिता का साथ हमें जन्मभर नही मिलता, कभी न कभी वो हमें छोड़ कर जाते हैं । फिर दोनों अंगूठों को जोड़ लें।
अब अंगूठे को छोड़ उसके पास वाली तर्जनी उंगली को खोलें
वो भी खुलेगी,
कारण भाई-बहन का अपना परिवार है , उनका खुद का अपना जीवन है, वो भी हमारे साथ जीवन भर नहीं रहने वाले हैं।
अब वो तर्जनी उंगलियां जोड़ हाथ के आखरिवाली सबसे छोटी उंगली को आपस मे खोलें।
वो भी खुलेंगी, कारण आपके बच्चे बड़े होने पर घोसला छोड़ उड़ान भरने ही वाले हैं ।
छोटी उंगलियों को अब जोड़ लें।
अब छोटी वाली ऊंगली के बगल वाली अनामिका, जिसमें सगाई की अंगूठी पहनते हैं, को एक दूजे से दूर करे……
आश्चर्य होगा;
पर वो दूर नही होगी। कारण जोड़ीदार, मतलब पति-पत्नी, जीवनभर एक साथ रहने वाले होते हैं । सुख और दुःख में एक दूजे के जीवनसाथी…..
“ये आयुष्य का सुंदर अर्थ
अनामिका सिवाय सब व्यर्थ “
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कृष्ण गोविन्द हरे