हमें जीवन क्यों मिला है, हम कष्ट क्यों भोगते है..?

फाइल फोटो

जनादेश टाइम्स -अध्यात्म टीम – @ambrishpsingh

एक रोज एक महात्मा अपने शिष्य के साथ भ्रमण पर निकले। गुरुजी को ज्यादा इधर-उधर की बातें करना पसंद नहीं था । कम बोलना और शांतिपूर्वक अपना कर्म करना ही गुरू को प्रिय था परन्तु शिष्य बहुत चपल था ।
     उसे हमेशा इधर-उधर की बातें ही सूझती. उसे दूसरों की बातों में बड़ा ही आनंद मिलता था । चलते हुए जब वे तालाब के पास से होकर गुजर रहे थे तो देखा कि एक मछुआरे ने नदी में जाल डाल रखा है ।
     शिष्य यह देख खड़ा हो गया और मछुआरे को ‘अहिंसा परमो धर्म’ का उपदेश देने लगा. मछुआरे ने उसे अनदेखा किया लेकिन शिष्य तो उसे हिंसा के मार्ग से निकाल लाने को उतारू ही था ।
       शिष्य और मछुआरे के बीच झगड़ा शुरू हो गया । यह देख गुरूजी शिष्य को पकड़कर ले चले और समझाया- बेटा हम जैसे साधुओं का काम सिर्फ समझाना है लेकिन ईश्वर ने हमें दंड देने के लिए धरती पर नहीं भेजा है ।
        शिष्य ने पूछा- हमारे राजा को तो बहुत से दण्डों के बारे में पता ही नही है और वह बहुतों से लोगों को दण्ड ही नहीं देते हैं । तो आखिर इस हिंसक प्राणी को दण्ड कौन देगा?

     गुरू ने कहा- तुम निश्चिंत रहो इसे भी दण्ड देने वाली एक अलौकिक शक्ति इस दुनिया में मौजूद है जिसकी पहुंच सभी जगह है । ईश्वर की दृष्टि सब तरफ है और वह सब जगह पहुंच जाते हैं । इसलिए इस झगड़े में पड़ना गलत होगा ।

शिष्य गुरुजी की बात सुनकर संतुष्ट हो गया और उनके साथ चल दिया. इस बात के दो वर्ष बाद एक दिन गुरूजी और शिष्य दोनों उसी तालाब से होकर गुजरे । शिष्य अब दो साल पहले की वह मछुआरे वाली घटना भूल चुका था ।
        उन्होंने उसी तालाब के पास देखा कि एक घायल सांप बहुत कष्ट में था । उसे हजारों चीटियां नोच-नोच कर खा रही थी ।
शिष्य ने यह दृश्य देखा और उससे रहा नहीं गया । दया से उसका ह्रदय पिघल गया ।
      वह सर्प को चींटियों से बचाने के लिए जाने ही वाला था कि गुरूजी ने उसके हाथ पकड़ लिए और उसे जाने से मना करते हुए कहा- बेटा! इसे अपने कर्मों का फल भोगने दो ।
      यदि अभी तुमने इसे बचाया तो इस बेचारे को फिर से दूसरे जन्म में यह दुःख भोगने होंगे क्योंकि कर्म का फल अवश्य ही भोगना पड़ता है । शिष्य ने पूछा- गुरूजी इसने ऐसा कौन-सा कर्म किया है जो इस दुर्दशा में यह पड़ा है?
     गुरूजी बोले- यह वही मछुआरा है जिसे तुम पिछले वर्ष इसी स्थान पर मछली न मारने का उपदेश दे रहे थे और वह तुम्हारे साथ लड़ने को उतारू था । वे मछलियां ही चींटियां हैं जो इसे नोच-नोचकर खा रही हैं ।
      यह सुनते ही आश्चर्य में भरे शिष्य ने कहा- यह तो बड़ा ही विचित्र न्याय है. गुरुजी बोले- बेटा! इसी लोक में स्वर्ग-नरक के सारे दृश्य मौजूद हैं । हर क्षण तुम्हें ईश्वर के न्याय के नमूने देखने को मिल सकते हैं ।
      चाहे तुम्हारे कर्म शुभ हो या अशुभ उसका फल तुम्हें भोगना ही पड़ता है । इसलिए ही वेद में भगवान ने उपदेश देते हुए कहा है अपने किए कर्म को हमेशा याद रखो, यह विचारते रहो कि तुमने क्या किया है क्योंकि तुमको वह तुम्हें भोगना पड़ेगा ।

      जीवन का हर क्षण कीमती है । इसे बुरे कर्मों में व्यर्थ न करो. अपने खाते में हमेशा अच्छे कर्मों की बढ़ोत्तरी करो क्योंकि जैसे कर्म होंगे वैसा ही मिलेगा फल । इसलिए कर्मों पर ध्यान दो क्योंकि ईश्वर हमेशा न्याय ही करता है ।

     शिष्य बोला- गुरुदेव तो क्या अगर कोई दुर्दशा में पडा हो तो उसे उसका कर्म मानकर उसकी मदद नहीं करनी चाहिए?
      गुरुजी बोले- अवश्य करनी चाहिए । मैंने तुम्हें इसलिए रोका क्योंकि मुझे पता था कि वह किस कर्म को भुगत रहा है । साथ ही मुझे ईश्वर के न्याय की झलक भी तो तुम्हें दिखानी थी ।
         मैंने मदद नहीं की क्योंकि मैं जानता था लेकिन अगर मुझे इसका पता न होता और फिर भी मैं कष्ट में पड़े जीव की मदद न करता तो यह मेरा पाप होता । शिष्य गुरुजी की बात को अब सही अर्थ में समझने लगा था ।
        *जीवन उतना ही है जितना विधाता ने तय किया है*,
*हमें पता नहीं कि कितने दिन विधाता ने दिए हैं इसलिए हर दिनअनमोल है*
आप किसी के जीवन में जिस दिन कोई सुखद परिवर्तन कर पाते हैं तो समझिए आपने विधाता के दिए जीवन का उस दिन का कर्ज चुका दिया ।

इसलिए ज्ञानी संतजन कहते हैं….. ईश्वर से मत डरो…अपने कर्म से डरो….क्योंकि आपके कर्म आपको आज नहीं तो कल ढूँढ ही लेंगे ।

ओमवीर(प्रताप)एस्ट्रोलाजर, वास्तुशास्त्र कंसलटेंट एंड मोटीवेशनल स्पीकर, समाधान क्लब, हरिद्वार, उत्तराखंड-  व्हाट्सअप- +91- 9987366641  Email- omveersmadhanclub@gmail.com ट्वीटर-: @omveerpratap


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जय जय श्री राधे कृष्ण 

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