भक्ति कितने प्रकार की होती है..?

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जनादेश टाइम्स- अध्यात्म टीम- @ambrishpsingh

श्रीमद्भागवतम् 7.5.23 में भक्ति के ९ प्रकार बताए गए हैं जिसे नवधा भक्ति कहते हैं।

*श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।*
*अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥*

श्रवण (परीक्षित),
कीर्तन (शुकदेव),
स्मरण (प्रह्लाद),
पादसेवन (लक्ष्मी),
अर्चन (पृथुराजा),
वंदन (अक्रूर),
दास्य (हनुमान),
सख्य (अर्जुन) और
आत्मनिवेदन (बलि राजा)
*इन्हें नवधा भक्ति कहते हैं….*

*श्रवण:* 

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*श्री कृष्ण* की लीला, कथा, महत्व, शक्ति, स्त्रोत इत्यादि को परम श्रद्धा सहित अतृप्त मन से निरंतर सुनना।

*कीर्तन:* 

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*श्री​ कृष्ण* के गुण, चरित्र, नाम, पराक्रम अर्थात हरे कृष्ण महामंत्र का आनंद एवं उत्साह के साथ कीर्तन करना।

*स्मरण:* 

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निरंतर अनन्य भाव से *श्री कृष्ण* का स्मरण करना, उनके महात्म्य और शक्ति का स्मरण कर उस पर मुग्ध होना।

*पाद सेवन:* 

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*श्री कृष्ण* के चरणों का आश्रय लेना और उन्हीं को अपना सर्वस्य समझना।

*अर्चन:* 

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मन, वचन और कर्म द्वारा पवित्र सामग्री से *श्री कृष्ण* के चरणों का पूजन करना।

*वंदन:* 

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भगवान *श्री कृष्ण* की मूर्ति को पवित्र भाव से नमस्कार करना या उनकी सेवा करना।

*दास्य:* 

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*श्री कृष्ण* को स्वामी और अपने को दास समझकर परम श्रद्धा के साथ सेवा करना।

*सख्य:* 

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*श्री कृष्ण* को ही अपना परम मित्र समझकर अपना सर्वस्व उसे समर्पण कर देना तथा सच्चे भाव से अपने पाप पुण्य का निवेदन करना।

*आत्म निवेदन:* 

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अपने आपको भगवान *श्री कृष्ण* के चरणों में सदा के लिए समर्पण कर देना और कुछ भी अपनी स्वतंत्र सत्ता न रखना। यह भक्ति की सबसे उत्तम अवस्था मानी गई हैं।

ओमवीर(प्रताप)एस्ट्रोलाजर, वास्तुशास्त्र कंसलटेंट एंड मोटीवेशनल स्पीकर, समाधान क्लब, हरिद्वार, उत्तराखंड-  व्हाट्सअप- +91- 9987366641  Email- omveersmadhanclub@gmail.com ट्वीटर-: @omveerpratap

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  *श्री कृष्ण शरणं मम:* 

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