जनादेश टाइम्स- अध्यात्म टीम- @ambrishpsingh
देवपूजन में पान-सुपारी, सिक्का, पानी, अक्षत (चावल), चंदन, रोली, पुष्प, दीपक, अगरबत्ती, धूपबत्ती, कुंकुम, हलदी, प्रसाद (मिष्ठान), फल आदि प्रयुक्त होते हैं। इन सबका अपना-अपना महत्त्व है। पान-सुपारी और सिक्का ऐसी वस्तुएं हैं, जिनके बिना पूजा संपन्न नहीं हो सकती। पूजा में पान और सुपारी का प्रयोग नारियल की तरह उत्तर-दक्षिण की एकता का प्रतीक है। पूजा में यह उसी प्रकार श्रेष्ठ माना गया है, जिस प्रकार स्वागत में सुपारी युक्त पान पेश किया जाता है। यह सम्मानजनक माना जाता है। ठीक वैसे ही भक्त के अंतःकरण में बैठे भगवान् की प्रतिमा के समक्ष वह सब कुछ अर्पित करता है, जो सम्मान और समर्पण का सूचक हो। चूँकि पान और सुपारी के वृक्ष दिव्य हैं, इसीलिए सभी देवताओं को प्रिय हैं।
सबसे पहले ‘स्नानं समर्पयामि’ कहते हुए चम्मच से जल चढ़ाते हैं, जिसका तात्पर्य यह है कि हम तन, मन, धन तथा भावना रूपी चार शक्तियों से समाज की सेवा कर सकें। बुराइयों को धोकर स्वच्छ, निर्मल और पवित्र समाज बना सकें। इसी के प्रतीक रूप में चार चम्मच जल भगवान् के चरणों में समर्पित करते हैं। ‘अक्षतं समर्पयामि” कहकर जो चावल चढ़ाए जाते हैं, उसका तात्पर्य यह है कि हम जो अनाज, पैसा, संपत्ति कमाते हैं, उसमें से एक अंश भगवान् और उसके बनाए प्राणियों के लिए लगाएं। पूरा का पूरा स्वयं हजम न करें।
चंदन लगाने का तात्पर्य यह है कि हमारे जीवन का अंश-अंश चंदन की तरह खुशबूदार हो। हम दूसरों की सेवा में अपने को समर्पित करना सीखें । जो चंदन की तरह बनते हैं, वे भगवान् को प्रिय होते हैं। पुष्पं समर्पयामि’ कहकर जो पुष्प चढ़ा जाते हैं, उनका तात्पर्य यह है कि पुष्प की तरह ही हमारा जीवन हमेशा खिलता रहे, हंसता रहे, प्रसन्न रहे फूल की तरह एक होकर समर्पित जीवन जीने और लोक मंगल के लिए अपना सर्वस्व सर्वत्र बिखेरने तथा अपनी सुगंध से सबको मोहित करने का गुण हम अपनाएं। दीपक तभी प्रकाशित होता है, जब उसमें पात्र, घी और बत्ती तीनों का संयोग हो, यानी पात्रता, निष्ठा और समर्पण। घी को रोकने के लिए जैसे पात्र की आवश्यकता होती है, ठीक वैसी ही पात्रता हममें भगवान् की सेवा की होनी चाहिए। समाज सेवा और सत्कर्मों के प्रति निष्ठाभाव ज्ञान का प्रकाश जन-जन तक पहुंचाने, भटकों को राह दिखाकर उनका मार्ग प्रकाशित करने और अंधेरा दूर करने की प्रतिज्ञा लेकर हम स्वयं को भगवान् के सामने आत्मसमर्पण करके प्रार्थना करें। यही दीप जलाने का सही अर्थ है।
अगरबत्ती, धूपबत्ती जलाने से सकारात्मक जैव विद्युत चुंबकीय ऊर्जा उत्पन्न होती है, जिससे मन में नकारात्मक विचार कम आते हैं और स्वास्थ्य अच्छा रहता है साथ ही इनके जलाने का तात्पर्य यह है कि हमारा जीवन और व्यक्तित्व ऐसा बने कि जहां कहीं भी जाएं, सबके मन में सुगंध और प्रसन्नता ला दें।
कुंकुम जो हलदी और चूने या नीबू के रस में हलदी को मिलाकर बनाया जाता है, त्वचा का शोधन और मस्तिष्क स्नायुओं का संयोजन करता है। हलदी में खून को शुद्ध करने, शरीर की त्वचा में निखार लाने, घाव को ठीक करने और अनेक बीमारियां दूर करने का गुण होता है। इसलिए यह एक महत्वपूर्ण औषधि भी है।
नैवेद्य प्रसाद के रूप में मिष्ठान, फल आदि भगवान् को चढ़ाए जाते हैं, इसका अर्थ यह है कि इस पृथ्वी से हमें जो कुछ भी मिल रहा है, उसे प्रभु की कृपा और प्रसाद माने। भोग लगाकर जो प्रसाद बांटा जाता है, उसमें भगवान् का सूक्ष्मांश आस्वादित होने के कारण उसका स्वाद अपूर्व व दिव्य हो जाता है। इसकी अल्प मात्रा के सेवन से ही अपूर्व रस मिलता है । मिष्ठान का आशय यह भी है कि हमारी बाणी, व्यवहार, व्यक्तित्व, कृतित्त्व, सबमें मिठास, मधुरता आए, क्योंकि इससे प्रभु प्रसन्न होते हैं। इस प्रकार पूजा में भगवान् की प्रिय वस्तुएं अर्पित की जाती हैं, ताकि वे हमारे कार्यों को निर्विघ्न पूरा करें।
आमतौर पर प्रसाद का तात्पर्य होता है जो बिना मांगे मिले, क्योंकि प्रसाद बांटने वाला स्वयं ही हाथ बढ़ाकर देता है। इसीलिए भगवान् के नाम पर बांटे जाने वाला पदार्थ का नाम प्रसाद रखा गया है। हम जानते हैं कि भगवान् की कृपा को प्रसाद रूप में प्राप्त करने का ही भक्त अभिलाषी होता है। इसीलिए वह प्रसाद के रूप में जो कुछ भी मिल जाता है, उसे सहज स्वीकार कर लेता है।
ओमवीर(प्रताप)एस्ट्रोलाजर, वास्तुशास्त्र कंसलटेंट एंड मोटीवेशनल स्पीकर, समाधान क्लब, हरिद्वार, उत्तराखंड- व्हाट्सअप- +91- 9987366641 Email- omveersmadhanclub@gmail.com ट्वीटर-: @omveerpratap
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
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