महादेव के सर्वप्रिय सावन मास का प्रारंभ सोमवार से हो गया है। इस दिन वैधृति योग में सावन मास का प्रारंभ हो रहा है। सोमवार के दिन से प्रारंभ होकर सोमवार के दिन ही इसका समापन भी हो रहा है, इसलिए इस वर्ष का सावन मास अत्यंत विशेष है। शिव-पुराण में उल्लेखित है कि श्रावण मास में भगवान शिव शक्ति अर्थात् देवी पार्वती के साथ भू-लोक में निवास करते हैं। अतः शिव के साथ भगवती की भी पूजा करनी चाहिए। मान्यता है कि भगवान शिव पहली बार ससुराल जाने के लिए धरती पर अवतरित हुए तो वह सावन का पवित्र मास था। ससुराल आगमन पर उनका जलाभिषेक से स्वागत किया गया, इससे वह बेहद प्रसन्न हुए। भक्ति भाव की यह मान्यता बन गई कि भगवान शिव हर वर्ष सावन मास में अपने ससुराल जाते हैं, इसलिए श्रावण मास में उनका जलाभिषेक करके उनको प्रसन्न किया जा सकता है और आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है।पवित्र सावन माह की शुरुआत हो गई है। शिव पूजा के लिए अत्यंत फलदायी माने जाने वाले इस माह में सोमवार के दिन भगवान भोलेनाथ की विशेष पूजा का महत्त्व है। आज सावन का पहला सोमवार है।भगवान शिव को सावन यानी श्रावण का महीना बेहद प्रिय है जिसमें वह अपने भक्तों पर अतिशय कृपा बरसाते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस महीने में खासकर सोमवार के दिन व्रत-उपवास और पूजा पाठ (रुद्राभिषेक,कवच पाठ,जाप इत्यादि) का विशेष लाभ होता है। सनातन धर्म में यह महीना बेहद पवित्र माना जाता है।शास्त्रों के अनुसार सोमवार हिमांशु यानि चंद्रमा का ही दिन है। स्थूल रूप में अभिलक्षणा विधि से भी यदि देखा जाए तो चन्द्रमा की पूजा भी स्वयं भगवान शिव की प्राप्त हो जाती है , क्योंकि चन्द्रमा का निवास भी भुजंग भूषण भगवान शिव का सिर ही है। सोम मतलब साक्षात शिव का दिन है। भगवान शंकर यूं तो अराधना से प्रसन्न होते हैं लेकिन सावन मास में जलाभिषेक, रुद्राभिषेक का बड़ा महत्व है। वेद मंत्रों के साथ भगवान शंकर को जलधारा अर्पित करना साधक के आध्यात्मिक जीवन के लिए महाऔषधि के सामान है। पांच तत्व में जल तत्व बहुत महत्वपूर्ण है। पुराणों ने शिव के अभिषेक को बहुत पवित्र महत्त्व बताया गया है। सावन मास की पौराणिक महत्ता से जुड़ी एक और घटना है। समुद्र मंथन सावन मास में हुआ था। जब मंथन से विष निकला तो पूरे संसार की रक्षा करने के लिए भगवान शिव ने उसे अपने कंठ में धारण कर लिया। विष से उनका कंठ नीला पड़ गया, जिससे वे नीलकंठ कहलाए। विष का प्रभाव महादेव पर न हो या कम हो, इसलिए समस्त देवताओं ने भगवान शिव को जल अर्पित किया। इससे भगवान शिव को काफी राहत मिली और वे प्रसन्न हुए। इस घटना के बाद से ही हर वर्ष सावन मास में भगवान शिव को जल अर्पित करने या उनका जलाभिषेक करने की परंपरा बन गई। ऐसी मान्यता है कि सावन में भगवान शिव का जलाभिषेक करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है और जिस तरह उन पर छाए संकट के बादल मिट गए, वैसे ही उनके भक्तों के भी संकट दूर हो जाएं।
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