श्री कृष्ण शरणम् ममः

फाइल फोटो

जनादेश टाइम्स- अध्यात्म टीम- @ambrishpsingh

आँख खोलकर दूसरों की बुराई देखने की बजाय आँख बंद करके स्वयं की बुराई को देखना ज्यादा बेहतर है। दूर दृष्टा बनो मगर दोष दृष्टा कभी मत बनो। जो दोष हम दूसरों में ढूंढते हैं अगर वही दोष स्वयं में ढूँढे जाएं तो जीवन के परिमार्जन का इससे श्रेष्ठतम कोई साधन नहीं हो सकता।

शास्त्रों में एक बात पर विशेष जोर दिया कि मनुष्य को अंतर द्रष्टा होना चाहिए। जिसकी दृष्टि भीतर की तरफ मुड़ जाती है उसे स्वयं के भीतर ही उस अखंड ब्रह्म की सत्ता का आभास होने लगता है। अंतर द्रष्टा होने का अर्थ मात्र इतना है कि दोष बाहर नहीं अपितु स्वयं के भीतर देखे जाएं। जब हमारे स्वयं के द्वारा स्वयं का मुल्यांकन होने लगता है। स्वयं द्वारा स्वयं को अच्छे और बुरे की कसौटी पर परखा जाता है और स्वयं द्वारा स्वयं का छिद्रान्वेषण किया जाता है तो उस स्थिति में हमारा मन स्वतः शोधित होकर निर्मल और पावन होने लगता है..!!

ओमवीर(प्रताप)एस्ट्रोलाजर, वास्तुशास्त्र कंसलटेंट एंड मोटीवेशनल स्पीकर, समाधान क्लब, हरिद्वार, उत्तराखंड-  व्हाट्सअप- +91- 9987366641 Email- omveersmadhanclub@gmail.com ट्वीटर-: @omveerpratap

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जय श्री हरि

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