
जनादेश टाइम्स- अध्यात्म टीम-
मनुष्य को दुःख का ऋण कभी नहीं भूलना चाहिए क्योकि यह दुःख ही था, जिसने उसे विनम्र बनाया, दूसरो की पीड़ा को समझना सिखाया, ममता का पाठ पढाया, सांसारिक सत्य को समझने के काबिल मानव बनाया और सबसे श्रेष्ठ यह की दुःख ने ही उसे परमात्मा का सुमिरन करवाया।
दु:ख तो संसार की देन है, आनंद स्वयं का होना चाहिए। अगर आप आनंदित होना चाहते हैं तो अकेले भी हो सकते हैं। दु:खी होने के लिए तो दूसरो की जरूरत पड़ती है। किसी ने आपका अपमान किया, कोई आपके अनुकूल नहीं चलता सब दुख दूसरो से जुड़े हुए होते हैं।
आनंद का दूसरे से कोई संबंध है ही नहीं। आनंद अंतर मे स्थित। दु:ख तो बाहर से आता है, और आनंद आपके भीतर से आता है। अगर आनंद चाहिए तो अपने भीतर डूबकी लगाईये।

ओमवीर (प्रताप) एस्ट्रोलाजर, वास्तुशास्त्र कंसलटेंट एंड मोटीवेशनल स्पीकर, समाधान क्लब, हरिद्वार, उत्तराखंड- व्हाट्सअप- +91- 9987366641 Email- omveersmadhanclub@gmail.com
जय जय श्री राधे कृष्ण