जनादेश टाइम्स- अध्यात्म टीम- @ambrishpsingh
आज बात करते है मन और बुद्धि में क्या अंतर है और उसकी पहचान कैसे करे। ये दो ऐसी चीजें हमारे अंदर है जिससे व्यक्ति के अंदर भ्रम और असमंजस की स्तिथि बन जाती है। इन दोनों में से समझ ही नही पाते कि कौन काम कर रहा है। क्या सच है क्या झूठ। इन दोनों में से किसकी माने किस की नही। इनका फर्क और पहचान जानना हर व्यक्ति की जरूरत है चाहे वो सामान्य जीवन जी रहा हो या आध्यात्मिक जीवन। सामान्य जीवन में व्यक्ति की मानसिक रोगी बन जाता है और अध्यात्मिक जीवन में परमात्मा और माया में फर्क नही कर पाता और भटकता रहता है या माया को ही परमात्मा समझ कर खुश होता रहता है। आज के सूत्र बहुत काम के है पूरे मानव जाति के लिए।
बुद्धि और मन में बहुत बड़ा अंतर है, वैसे तो बुद्धि मन से पहले आती है उसका स्तर मन से नीचे होता है। इस कारण से ही मन की जीत को बड़ा कहा गया है। मगर फिर भी मन को पहले समझे गे जिससे बुद्धि को आसानी से समजा जा सके। मन आप को कल्पना और दर्शय देगा। ध्यान से समझे इस बात को की मन का सीधे तौर पर आंखों से जुड़ा है चाहे वो अंदर की हो या बाहर की। जब भाहर की आंख खुली है तो कल्पना करेगा और जब बन्द है तो सपने (दर्शय) देगा। और जब अंदर की आंख खुल चुकी हो तब कल्पना ही यथार्थ (अविष्कार, कला, संस्कार) और दर्शन (जो भूत या भविष्य में सच रा रही हो) बन जाएगी। अब इसका उदाहरण देता हूं- कोई आदमी ध्यान में है और कह रहा है कि मुझे भगवान के चतुर्भुज रूप के दर्शन हुए। जो ये कह रहा है उस व्यक्ति ने पहले ही वो तस्वीर देख रखी है जिसका प्रतिबिम्ब आंखों में छप चुका है और जब वो ध्यान के समय आंखे बंद करता है तो मन की इच्छा से वही छाया दिखने लग जाती है। मगर सच ये है जिसनें अंदर की आंख से देखा उसने कहा कि वो ज ज्ञानरूप में प्रकाश है। इसी प्रकार कई व्यक्ति भाहर की आंखों को बंद करके रात को सपने देखते है मगर वो कभी सच नही होते, मगर जब वही सपने अंदर की आंख से देखे जाते है तो दर्शन बन जाता है। इसी प्रकार जहाज का आविष्कार बनाने वाले कि कल्पना थी जो यथार्थ बन गई, चित्रकार की कल्पना तस्वीर बन जाती है। एक बात विशेष है कि जहा भी खुशी दिखे वहा वहा मन है।
अब बुद्धि को समझे और पहचाने- बुद्धि आप को सोच-विचार और भ्रम (संदेह) देगी, मगर उसके कोई image नही होगी या ये कहे कोई तस्वीर नही बनेगी, कोई दर्शय नही बनेगा। बुद्धि आप से बात करेगी और किसी भी विषय पर तर्क-वितर्क करेगी शब्दो के द्वारा। जैसे हम किसी दूसरे व्यक्ति से बात करते है। और एक बात समझने की है कि बुद्धि जितनी गहरी होगी वो विवेक में बदल जाएगी। बस यही फर्क है बुद्धि औऱ मन में। अब जब भी आप के अंदर जिज्ञासा हो कि कोई विचार मन का हैं या बुद्धि का तो अपने ऊपर इस बताये गए तरीके से खुद समजे की आप पर बुद्धि काम कर रही है या मन अपना प्रभाव बनाये हुए है। सभी साधको से एक बात जरूर कहुगा की कभी भी मन को न मारे और ना ही कंट्रोल करे। बस मन को शुद्ध करो। तभी परमात्मा घटित होगा। क्योकि मन आत्मा का ही अस्थिर और चंचल स्वभाव है। वैसे तो बहुत कुछ है बताने के लिए मगर लिखने में सब कुछ नही आ सकत है।
ओमवीर(प्रताप)एस्ट्रोलाजर, वास्तुशास्त्र कंसलटेंट एंड मोटीवेशनल स्पीकर, समाधान क्लब, हरिद्वार, उत्तराखंड- व्हाट्सअप- +91- 9987366641 Email- omveersmadhanclub@gmail.com ट्वीटर-: @omveerpratap
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय