जनादेश टाइम्स- अध्यात्म टीम- @ambrishpsingh
हरे कृष्ण
एकांत…….
गोविन्द को एकांत बहुत प्रिय है।
हाँ..वो जब भी हम से मिलना चाहते हैं तो स्वयं एकांत बना लेते हैं।
वो जब भी आते हैं दूसरे की सत्ता रहने ही नहीं देते, तब स्वाभाविक एकांत मिलन होता है।
देखो तो.. आह गोविन्द.. कभी निन्दा के रूप में आते हैं,जिस से प्रशंसा का सारा कोलाहल शांत हो जाता है।
कभी वेअपमान के रूप में आतेहैं तो सम्मान की सारी भीड़ भाग जाती है।
कभी गोविन्द दारिद्र्य के रूप में आते हैं तो आस पास घेरा डाले रहने वाले स्वार्थियों के दल हट जाते हैं।
वे कभी असफलता बन कर आतेहैं तो सफलता की पूजा करने वाले तितर वितर हो जाते हैं..
हा हा हा..गोविन्द कभी तो भयानक पीड़ा रूप में ही आ जाते हैं फिर उस पीड़ा के अतिरिक्त और कुछ याद ही नहीं रहता …
इस प्रकार वे विभिन्न प्रतिकूल रूपों में आकर हमें अकेला कर देते हैं और फिर अकेले में हम से मिलते हैं
उस एकांत में अगर हम उन्हें पहचान ले फिर तो..
परमानन्द है फिर कुछ और करना- पाना शेष ही नहीं रहता।
पर अगर हम उनको पहचान नहीं पाते तो फिर सदा के लिए भटकना नही मिट सकता।
जब सब ओर अनुकूलता हो तो गोविन्द को पहचानना बहुत कठिन होता है
उस समय चारों ओर ऐसी भीड़ होती है कि हम अपनेआप को उसी में खो देते हैं।
तब गोविन्द हमारे प्यारे..
उस भीड़ के कोलाहल को दूर करने के लिए विभिन्न प्रतिकूलताओं के रूप में आते हैं।
ये प्रतिकूलताएं वस्तुतः उनके परम प्रेम का ही परिचय है।
वाह गोविन्द याद दिला दिया.. क्यों कुंती ने प्रतिकूलता ही मांगी थी क्योंकि वो जानती थी कि आप को एकांत प्रिय है।
मेरे गोविन्द..बस अपने प्रेम की कृपा अनुकूलता -प्रतिकूलता में अपने प्रियजन पर बरसाते रहना।
ओमवीर(प्रताप)एस्ट्रोलाजर, वास्तुशास्त्र कंसलटेंट एंड मोटीवेशनल स्पीकर, समाधान क्लब, हरिद्वार, उत्तराखंड- व्हाट्सअप- +91- 9987366641 Email- omveersmadhanclub@gmail.com ट्वीटर-: @omveerpratap
हे गोविन्द चले आओ, हे गोपाल चले आओ