रवि आनंद, वरिष्ठ टेलीविजन पत्रकार-
कोरोना काल में आधुनिकता की चकाचौंध में स्कूल ज्ञान के मंदिर भर नहीं रह गए सच में दुकान बन गए है जहां सब कुछ बिकता है सिर्फ मानवीय संवेदना को छोड़कर सरकार भी इन शिक्षा माफियाओं के हाथ की कठपुतली बनती जा रही है। जब देश का मुखिया ने कोरोना संक्रमण काल को लेकर सभी को संवेदनशील बनाने की बात कहि थी तो लगा था गरीब लोगों की नौकरियों पर आंच नहीं आएगा और शिक्षा व्यवस्था के लिए भी कुछ ना कुछ उपाय सर्वमान्य रूप से निकल आएगा पर जुलाई से स्कूलों में ऑनलाइन कक्षाएं शुरू कराने की तैयारी है। इस पर निजी स्कूल संचालक व शासन के बीच अभी तक विवाद की स्थिति बन हुई है। अब हर तरफ से कोरोना संक्रमण आपदा को अवसर के रूप में लेने का प्रयास जारी है। ताजा मामला निजी स्कूलों से हर दिन स्कूल प्रशासन और अभिवावक के बीच होने वाली नोकझोंक बढ़ती जा रही है। प्रधानमंत्री और राज्य सरकार ने जनहित में यह दिशानिर्देश जारी किया था कि अभिभावकों से मासिक शुल्क और वार्षिक शुल्क के नाम पर दबाव नहीं बनाया जाए। पर अब अनलॉक 01 में स्कूली प्रशासन माता पिता से अनावश्यक रूप से बच्चों के फी के अलावा अन्य खर्चा के नाम पर दबाव बना रही है। CBSE के अलावा किसी भी बोर्ड़ ने बच्चों के भविष्य के लिए भावी योजना पर काम तक शुरू नहीं किया है। 2020 में बोर्ड की परीक्षा के बाद की शिक्षा या बोर्ड से पहले की शिक्षा पर कोई भी चर्चा नहीं हो रही है, कल तक किताब और कॉपी के बोझ के तले बचपन को फिर एक बार मोबाइल ने ग्रहण लगा दिया है। कल तक जो मोबाइल फोन स्कूल में प्रतिबंधित था। पैसों के लालच ने उसके साथ भी समझौता कर लिया है। बच्चों के नाजुक कमर से नाजुक आंखों पर अब निशाना साधा है। दिल्ली में ऑनलाइन क्लास ग्रुप में क्या अश्लील हरकत हुई उसमें फिर काफी चर्चा होगी। अभी तो नए सेशन में बच्चे एक दिन भी स्कूल नहीं गए पर अप्रैल और मई महीने में स्मार्ट क्लास समेत कई सारे अतिरिक्त शुल्क भी विद्यालयों ने वसूलना जारी कर दिया है। ये वो स्कूल है जो स्थानीय समाज के पेज 3के लोगों के बच्चे पढ़ते हैं। ऐसे स्कूल के बच्चों के भविष्य का खतरा कम होता है क्योंकि उन्हें सपोर्ट करने के लिए घरवाले होते हैं। स्कूल का फाइव स्टार होने से समाज में उनका रुतबा बनता है। शायद इसी मानसिकता को लेकर आजकल स्कूल प्रशासन शिक्षा को छोड़कर और किसी चीज में समझौता नहीं करते हैं। वर्ना बड़े बड़े नामी गिरामी स्कूल के बच्चे सरकारी बोर्ड परीक्षा में टॉप पर नहीं होते। टॉप पर तो सरकारी स्कूलों में पढ़ाई पूरी करने वाले बच्चे ही टॉप करते हैं। राज्यों के निजी स्कूलों का हाल तो ऐसा होता है मानो हम प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री के दफ्तरों के चक्कर में आ गए हैं जहां मंत्री और अधिकारियों की भी नहीं सुनी जाती है। पर उस स्कूल का रिजल्ट पता कीजिए तो मालूम चेलगा स्कूल के ज्यादातर बच्चे परीक्षा में शामिल ही नहीं होते । पर कुछ ऐसे बहुत सारे निजी स्कूल भी हैं जो सरकार के निर्देश पर काम करते हैं और अभिभावकों के साथ भी नजर आए हैं। जिन्होंने अभिभावकों से किस्तों में शुल्क जमा करने की सुविधा प्रदान कर रहे हैं। और शिक्षा व्यवस्था की कमियों के कारण बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए ही कार्य करते हैं। पर ऐसी स्कूल की संख्या नाममात्र की है क्योंकि ऐसी व्यवस्था से उन बड़ी माफिया को नुकसान होने की आशंका से ऐसी छोटी संस्थानों से स्कूली शिक्षा माफिया को ज्यादा खतरा महसूस होता है और इस खेल में सरकार भी शिक्षा माफिया का ही साथ देती हैं क्योंकि उनसे चुनाव में सहयोग प्राप्त होता है। तभी तो बिहार में कोई बड़ा आंदोलन ना हो जाए इसलिए सरकार ने झूठ मूठ का आदेश जारी कर दिया कि कोरोना काल में अभिभावकों से फीस के लिए दबाव नहीं बनाया जा सकता तो दूसरी तरफ ऑनलाइन क्लास के खेल में सरकार भी शामिल हो गई और यह आदेश जारी कर दिया गया कि जो विद्यालय ऑनलाइन क्लास चला रहे हैं उन्हें पूरी फीस दी जाए अब कुछ विद्यालयों को छोड़कर अधिकांश विद्यालय मासिक फी की जगह अप्रैल महीने में लिए जाने वाले वार्षिक शुल्क को बलपूर्वक वसूल रहे है। निजी विद्यालयों ने वार्षिक शुल्क की मोटी रकम अप्रैल महीने में वसूली हद तो यह हुई कि मासिक शुल्क भी वसूला गया साथ ही साथ ट्रांसपोर्टेशन का भी फी ले रहा है। निजी विद्यालय अगर दुकान है तो अभिभावक ग्राहक और दुकानदार अपने ग्राहक के साथ कैसा व्यवहार कर रहा है यह बताने की जरूरत नहीं। यानी फिर से नुकसान शिक्षा का ही होना है। हाई कोर्ट ने भी अब सुझाव दिया कि क्यों न इस पूरे मामले में सरकार, निजी स्कूल और अभिभावक मिल बैठकर इसका हल निकालें। क्योंकि लॉकडाउन के चलते लोगों की आर्थिक स्थिति खराब हो गई है। ऐसे में कई अभिभावक अपने बच्चों की स्कूल फीस भरने में अब अक्षम हैं।अब सरकार को निजी स्कूल में फीस छूट के लिए आदेश निर्गत करना ही चाहिए। ताकि अभिभावकों की समस्या का हल हो सके। फीस के बाद स्कूल के किताब और कॉपियों को लेकर भी अक्सर समस्या का सामना करना पड़ता है वहीं ड्रेस कोड के नाम पर भी लूट मचाई जाती है।अधिकांश निजी स्कूल मनमाने तरीके से सिर्फ फीस ही नहीं बढ़ा रहे, स्कूल ड्रेस और किताबों की खरीद में भी जमकर वसूली की जा रही है। चुनिंदा दुकानों से अभिभावकों को ड्रेस और किताबें लेने के एसएमएस किए जा रहे हैं। निर्धारित दुकानों से खरीद नहीं करने वाले अभिभावकों को स्कूल डायरी में बाकायदा नोट लिखकर भेजे जाते हैं। स्कूलों द्वारा तय चुनिंदा दुकानों में बाजार की अन्य दुकानों के मुकाबले अधिक कीमत पर ड्रेस और किताबें बेची जा रही हैं, जिसमें स्कूलों की कमीशन होती है। स्कूलों की इस मनमानी को रोकने के लिए सरकार न किसी से हिसाब मांगती है और न ही कोई और पहल हुई है। नर्सरी के दाखिलों में कई जगह बिल्डिंग फंड के नाम पर मनमानी राशि भी वसूली जाती है।
–लेखक टेलीविजन के वरिष्ठ पत्रकार है यह उनके विचार है ।