ये श्लोक तो सबको पता ही होगा, इसका अर्थ पढ़कर चौंक जाएंगे आप..!

फाइल फोटो

जनादेश टाइम्स- अध्यात्म टीम- @ambrishpsingh

“त्वमेव माता च पिता त्वमेव,
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव !
त्वमेव विद्या, द्रविणं त्वमेव,
त्वमेव सर्वम् मम देवदेव !!”

सरल-सा अर्थ है–
‘हे भगवान ! तुम्हीं माता हो, तुम्हीं पिता, तुम्हीं बंधु, तुम्हीं सखा हो। तुम्हीं विद्या हो, तुम्हीं द्रव्य, तुम्हीं सब कुछ हो, तुम ही मेरे देवता हो !’

बचपन से प्रायः यह प्रार्थना हम सबने पढ़ी है।

मैंने ‘अपने रटे हुए’ कम से कम 50 मित्रों से पूछा होगा,

‘द्रविणं’ का क्या अर्थ है..?

संयोग देखिए एक भी न बता पाया, अच्छे खासे पढ़े-लिखे भी। एक ही शब्द “द्रविणं” पर  सोच में पड़ गए।

द्रविणं पर चकराते हैं और अर्थ जानकर चौंक पड़ते हैं।
द्रविणं जिसका अर्थ है द्रव्य, धन-संपत्ति..! द्रव्य जो तरल है, निरंतर प्रवाहमान। यानी वह जो कभी स्थिर नहीं रहता, आखिर ‘लक्ष्मी’ भी कहीं टिकती है क्या..?

कितनी सुंदर प्रार्थना है और उतना ही प्रेरक उसका ‘वरीयता क्रम’ भी..!
ज़रा देखिए तो, समझिए भी..!

सबसे पहले माता, क्योंकि; वह है तो फिर संसार में किसी की जरूरत ही नहीं। इसलिए हे प्रभु ! तुम माता हो..!

फिर पिता, अतः हे ईश्वर ! तुम पिता हो ! दोनों नहीं हैं तो फिर भाई ही काम आएंगे। इसलिए तीसरे क्रम पर भगवान से भाई का रिश्ता जोड़ा है।

जिसकी न माता रही, न पिता, न भाई तब सखा काम आ सकते हैं, अतः सखा त्वमेव !

वे भी नहीं, तो आपकी विद्या ही काम आती है। यदि जीवन के संघर्ष में नियति ने आपको निपट अकेला छोड़ दिया है, तब आपका ज्ञान ही आपका भगवान बन सकेगा। यही इसका संकेत है।

और सबसे अंत में ‘द्रविणं’ अर्थात धन। जब कोई पास न हो, तब हे देवता तुम्हीं धन हो।

रह-रहकर सोचता हूं कि प्रार्थनाकार ने वरीयता क्रम में जिस धन-द्रविणं को सबसे पीछे रखा है, वही धन आज-कल हमारे आचरण में सबसे ऊपर क्यों आ जाता है..? इतना कि उसे ऊपर लाने के लिए माता से पिता तक, बंधु से सखा तक सब नीचे चले जाते हैं, पीछे छूट जाते हैं।

वह कीमती ज़रूर है, पर उससे ज्यादा कीमती माता, पिता, भाई, मित्र, विद्या हैं। उससे बहुत ऊँचे आपके अपने हैं..!

बार-बार ख्याल आता है, कि ‘द्रविणं’ सबसे पीछे बाकी रिश्ते ऊपर। बाकी लगातार ऊपर से ऊपर, धन क्रमश: नीचे से नीचे..!

याद रखिए; दुनियां में झगड़ा रोटी का नहीं थाली का है ! वरना; वह रोटी तो सबको देता ही है..!

चांदी की थाली यदि कभी हमारे वरीयता क्रम को पलटने लगे, तो हमें इस प्रार्थना को जरूर याद कर लेना चाहिए।

ओमवीर(प्रताप)एस्ट्रोलाजर, वास्तुशास्त्र कंसलटेंट एंड मोटीवेशनल स्पीकर, समाधान क्लब, हरिद्वार, उत्तराखंड-  व्हाट्सअप- +91- 9987366641  Email- omveersmadhanclub@gmail.com ट्वीटर-: @omveerpratap

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हरे कृष्ण हरे कृष्ण 

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