
सच तो ये है कि पिताजी अब आप की मृत्यु का दोषी मैं हूँ । कोरोना के नाम पर हॉस्पिटल में जिस प्रकार से इलाज होना चाहिए, वो नहीं हो रहा। मुझे क्या मालूम था कि आपको आईसीयू में ले जा रहे हैं या कत्ल घर में ? बसपा के बड़े नेता सतीश मिश्र के टी एस मिश्रा हॉस्पिटल मुझे जिला प्रशासन से आवंटित हुआ। वहां पहुंच कर मैं कहता रहा कि मुझे पिता जी के साथ ही रखो। अगर इन्हें ऑक्सिजन की ज़रूरत है और आईसीयू में ही रखना जरूरी है तो मुझे भी रखो। भले ही वहां एक स्टूल या कुर्सी पर बिठा देते मुझे। क्योंकि पिता जी 7 फरवरी से, जब से उन्हें ब्रेन हैमरेज हुआ था तब से साफ बोल नहीं पाते थे, इसलिए मैं उनके बोल, हाव भाव से समझ जाऊंगा कि उन्हें क्या महसूस हो रहा, क्या तकलीफ है, क्या ज़रूरत है ताकि उनका इलाज अच्छे से हो सके। चूंकि मैं उनका पुत्र हूँ और खुद भी कोरोना संक्रमित इसलिए मुझे अब क्या दिक्कत होगी तो भी उन्हें 6th फ्लोर पर लिये चले गए और मुझे ग्राउंड फ्लोर पर जबरन जनरल वार्ड में रोके रहे। मैने उन्हें ले जाते 6-7 लोगों से कहा भी, “भइया, पिता जी को बहुत प्यास लग रही। बार बार मुंह सूख रहा। उन्हें पानी जरूर पिला देना।” उन लोगों ने कहा कि परेशान मत हो। पिला देंगे। यह बात 13 सितम्बर की शाम 6.30 की है।

13 सितम्बर को दोपहर में जब लखनऊ के एसीएमओ डॉ ए पी सिंह का फोन आया था तो उन्होंने भी विश्वास दिलाया था कि ठीक है, आपके पिताजी के बेड के पास ही आपका बेड होगा, लेकिन यहां का दृश्य ही अलग। पिताजी को 7 फरवरी, 2020 की रात से लेकर 12 सितम्बर तक की हर रात तक मैं हमेशा पास ही सोता रहा। बिना नागा । कि न जाने कब, क्या, कैसे, कौन सी जरूरत कब उन्हें पड़ जाए। पर, बस यही 13 की रात मनहूस थी मेरी ज़िंदगी की, मैंने अपने जनरल वार्ड के काउंटर पर सफेद पीपीई किट पहने लोगों से कहा भी कि मेरे पिताजी के बारे में कुछ बता दीजिए तो कहीं फोन कर कुछ पूछा इन लोगों ने कहीं, फिर बताया कि ठीक है सब। पहले ऑक्सिजन 10 किलो के प्रेशर पर थी लेकिन अब 8 किलो के प्रेशर पर है। मुझे कुछ नहीं समझ आया। और सुबह 4 बजे मेरी आँख लग गई। इतनी बेचैनी कि पसीने से लथपथ। 6 बजे अपने आप नींद खुल गयी। बहुत पसीना और बेचैनी। बहुत उलझन होने लगी। उठ के अपने बिस्तर पर बैठ के ॐ का पाठ करने लगा। बेचैनी कम नहीं हो रही थी। फ्रेश हो लिया। फिर बैठ के सोचने लगा बहुत कुछ। कि पिताजी बहुत प्यासे थे। पानी तो दिया ही होगा इन लोगों ने आईसीयू में। अपने मन को शांत करने के लिए फिर तेजी तेजी से प्राणायाम करने लगा। 7 बजे मेरी श्रीमती जी का फोन आया। रोते रोते बोलीं,”आपके हॉस्पिटल से फ़ोन आया था अभी, पापा नहीं रहे।”
मेरी तो दुनिया ही खत्म सी हो गई।
इन लोगों ने पानी भी न दिया क्या ?
बताया गया कि 14 सितम्बर की सुबह 6.50 पर वह महाप्रयाण को गए। पर, मेरे पिताजी इस कोरोना काल की ऐसी मृत्यु के पात्र हरगिज़ न थे। इसलिए भी लगता है कि कुछ गड़बड़ तो जरूर है। एक नेक्सस बन गया है जो जीवित लोगों को लाशों में तब्दील कर धनवान बनने में लगा है। पिताजी! पहले मैं कहता था हमेशा कि “माफ करना माँ, मैं आपको बचा न पाया”अब आज से कहूंगा, “पिताजी और माँ, मुझे माफ़ करियेगा, मैं आप दोनों को बचा न पाया।”
आपका सल्लू अब अनाथ है… पापा।
नोट- यह लेख और फोटो, वरिष्ठ पत्रकार हेमेंद्र सिंह तोमर की फेसबुक वाल से लिया गया है।