राम-रावण और विजयदशमी पर्व से जुड़ी अद्भुत जानकारी..!

फाइल फोटो

जनादेश टाइम्स- अध्यात्म टीम- @ambrishpsingh

विजयादशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।*
आज के ही दिन वर्षों पूर्व भगवान श्रीराम ने एक आतताई असुर रावण का वध किया था और उसके पापों से समस्त पृथ्वी को मुक्त कराया था। हम उसी सन्देश को अपने भीतर प्रतिस्थापित करने हेतु इस त्यौहार को प्रतिवर्ष मनाते हैं। इस विजयादशमी के सन्देश को जानने के लिए पहले हमें इस युद्ध के पात्रों तथा उसके पीछे के दर्शन को जनना होगा।

सबसे पहले जानते हैं, रावण कौन है?
रावण मुनि पुलत्स्य के कुल में पैदा होने वाला ऋषि विश्रवा का पुत्र है तथा जन्म से ही दस सर वाला है। जैसा कि हम जानते हैं कि रावण अत्यंत पवित्र कुल में पैदा होता है और उसके दस सर वास्तव में धर्म के दस लक्षण हैं; धैर्य, क्षमा, संयम, अस्तेय, पवित्रता, इन्द्रिय निग्रह, सद्बुद्धि, विद्या, सत्य और अक्रोध। किन्तु वह शिव की आराधना में अपने अपने दसों सिरों की बलि दे देता। *शिव का अर्थ होता है कल्याण अर्थात स्वकल्याण के यज्ञ(कर्मों) में वह अपने दस सिर यानी धर्म के दस लक्षणों की बलि दे देता है और उसके बदले उसे अधर्म के दस सिर प्राप्त होते हैं जो कि क्रमशः है; अधीरता, क्रूरता, अपवित्रता, इंद्रियलोलुपता, परिग्रह, दुर्बुद्धि, अविद्या, असत्य, क्रोध तथा चपलता।

*रावण का “वध” किया जाता है श्रीराम द्वारा न कि हत्या।* ये दोनों शब्द ध्यान देने योग्य हैं। *वध में व्यक्ति का आशय सामने वाले के प्राणों का हरण करना नहीं होता जबकि उसका जो उद्देश्य होता है उसके अनुक्रम में किसी की मृत्यु सम्भाव्य होती है।* *इसी तरह राम का उद्देश्य धर्म की स्थापना था न की रावण को मारना* किन्तु धर्म स्थापित करने के अनुक्रम में रावण की मृत्यु कारित हुई इसीलिए वह रावण वध था।

अब हमें जानना चाहिए कि *राम कौन हैं, जिन्होंने रावण का वध किया?*
*राम एक ऐसे व्यक्ति हैं जो कि सबको आनन्द देने वाले हैं, सबमें रमण करने वाले हैं तथा धर्म के रथ पर चढ़कर युद्ध करते हैं जिसमें स्थिर बुद्धि और धैर्य नाम के पहिये लगे हुए हैं। सत्य और शील उस पर लगी हुई पताका है। जिसमें बल, विवेक, संयम, परमार्थ, क्षमा, कृपा और समता नाम के सात घोड़े जुते हुए हैं। ईश्वर में आस्था जिसका सारथी है और वो विरक्ति (अनासक्ति) की लगाम से घोड़ों को नियंत्रित करते हैं। जिसके पास सन्तोष की तलवार है, दान का कुठार (फरसा), बुद्धि नामक अमोघ शक्ति है, श्रेष्ठ ज्ञान नामक कठोर धनुष है। जिसके पास निर्मल और स्थिर चित्त (मन) का छत्र है, यम-नियम जैसे अनेक बाण हैं। जिसका कवच विद्वानों तथा गुरुजनों की पूजा से निर्मित हुआ है।* ऐसे रथ पर चढ़कर ही रावण का संहार कर सकते हैं राम।
भगवान राम अंतिम युद्ध में रावण का वध करने के लिए अपने श्रेष्ठ ज्ञान के धनुष से 31 बाण मारते हैं, जिससे रावण की मृत्यु कारित होती है। उसमें से 30 बाण उसके दस शीश और बीस भुजाओं को बेधते हैं और एक बाण उसके नाभि कुंड का अमृत शोषित करता है। अब अधर्म रूपी रावण के सिर और भुजाएं सामान्य बाणों से तो काट नहीं सकते थे, इसलिए वे मारे गए 30 बाण धर्म के 30 तत्व थे जो कि क्रमशः है – सत्य, दया, तपस्या, शौच, तितिक्षा, उचित-अनुचित विचार, मन का संयम, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, त्याग, स्वाध्याय, सरलता, सन्तोष, समदर्शिता, महात्माओं की सेवा, निवृत्ति, कर्मफल ज्ञान, मौन, आत्मचिंतन, संवितरण, इष्टभाव, ईश्वर में आस्था, कीर्तन, स्मरण , सेवा, पूजा, ईश्वर को नमस्कार, दास्यभाव, सख्यभाव और ईश्वर के प्रति समर्पण।
इस प्रकार *चाहे वो हमारे भीतर का रावण हो या बाहर का, उसे मारने के लिए हमें ऊपर वर्णित रथ पर बैठे हुए राम का आह्वान करना होगा; जो इसी प्रकार 30 बाणों से धर्म के शीश और बाहुओं का उच्छेदन(तराश) करेंगे।*

कुमार अथर्व

एस्ट्रोलाजर, वास्तुशास्त्र विशेषज्ञ व मोटीवेशनल स्पीकर, समाधान क्लब हरिद्वार, उत्तराखंड-   व्हाट्सअप-: +91-9987366641 ई-मेल-: kumaratharva@gmail.com टवीटर-: @kumaratharva2

 श्रीराम जय राम जय जय राम

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